वहाँ कई सारे कपड़े बिखरे पड़े थे। एक बर्तन वाली से बर्तन बदलने के लिए उन्ही के बीच मे मै थी। जब सोनू के पापा ने सोनू के लिए मुझे उसके जन्मदिन पर तोहफा , मुझे लाके दिया , उस समय मेरा रंग सफेद चमचमाता हुआ था। वो मुझे अपनी मन पसन्दीदा कपड़ो मे गिना करता था। मुझे सम्भाल के रखा जाता ओर प्रेस करके पहना जाता था। आज मै पुरानी ओर मेरा रंग फिका हो गया था तो मुझे घर से बेदखल कर दिया जा रहा था। वहाँ सोनू की मम्मी और कपड़ो से बर्तन बदलने वाली दोनो ही कपड़ो को धीरे-धीरे देख-देख कर छाट रहे थे। कपड़े जमीन पर रखे हुए थे उनके साथ मै भी थी। पुराने कपड़े एक-एक करके बर्तन बदलने वाली की बाल्टी मे जा रहे थे। मै मन-ही-मन डर रही थी। इस घर की मुझे आदत सी हो गई थी। सोनू की मम्मी को पसीना आ रहा था मुझे लगा मेरे को दुर भेजने को लेकर घबराहट से , लेकिन ऐसा नही था। पसीना गर्मी की वजह से आ रहा था। सोनू की मम्मी बोलती है “ अरे , बहन कितनी गर्मी है , इस गर्मी मे तो घर से निकलने का मन ही नही करता। “ बर्तन वाली अपना पल्लू उठाते हुए हवा करती “ हाँ बहन देखो पंखा चल रहा है लेकिन पसीने तो ....... ” सोनू की मम्मी जल्दी...