वहाँ कई सारे
कपड़े बिखरे पड़े थे। एक बर्तन वाली से बर्तन बदलने के लिए उन्ही के बीच मे मै थी।
जब सोनू के पापा ने सोनू के लिए मुझे उसके जन्मदिन पर तोहफा, मुझे लाके दिया, उस समय मेरा रंग सफेद चमचमाता हुआ था। वो
मुझे अपनी मन पसन्दीदा कपड़ो मे गिना करता था। मुझे सम्भाल के रखा जाता ओर प्रेस
करके पहना जाता था। आज मै पुरानी ओर मेरा रंग फिका हो गया था तो मुझे घर से बेदखल
कर दिया जा रहा था। वहाँ सोनू की मम्मी और कपड़ो से बर्तन बदलने वाली दोनो ही कपड़ो
को धीरे-धीरे देख-देख कर छाट रहे थे। कपड़े जमीन पर रखे हुए थे उनके साथ मै भी थी।
पुराने कपड़े
एक-एक करके बर्तन बदलने वाली की बाल्टी मे जा रहे थे। मै मन-ही-मन डर रही थी। इस
घर की मुझे आदत सी हो गई थी। सोनू की मम्मी को पसीना आ रहा था मुझे लगा मेरे को
दुर भेजने को लेकर घबराहट से , लेकिन ऐसा नही था। पसीना गर्मी की वजह से आ रहा था। सोनू की मम्मी बोलती है “अरे, बहन कितनी गर्मी है,
इस गर्मी मे तो
घर से निकलने का मन ही नही करता।“ बर्तन वाली अपना पल्लू उठाते हुए हवा करती “हाँ बहन देखो पंखा चल रहा है लेकिन पसीने तो .......”
सोनू की मम्मी
जल्दी से जल्दी बर्तन वाली से कपड़े देकर बर्तन लेकर फ्री होना चाहती थी।
बर्तन वाली : “बहन जी ये पेंट को नही लुंगी ज्यादा घिसी हुई”।
सोनू की मम्मी :
ये थोड़ी सी तो है.......
बर्तन वाली :
“ये शर्ट भी देखो फटा हुआ है। ज्यादा”
अब मै सोचने लगा
मेरे मे भी कोई कमी हो,
जो मै इस घर को
छोडकर न जाऊँ। अब मेरी बारी आ चुकी थी। मै बर्तन वाली के हाथ मे थी। वह मुझे
बड़ी ग़ोर से निहारने लगी। मेरा दिल धक-धक कर रहा था। बर्तन वाली मधुर आवाज मे कहती
है “ये देखो बहन जी इस शर्ट मे कलर से लिखा है ओर
ये देखो कितनी हल्की शर्ट है इसे भी अलग रखो”। मेरे हर एक बटन मुस्कुरा रहे थे मै अब इस घर को छोडकर नही जाउँगी। लेकिन ये
मेरी खुशी चन्द मिन्टो की थी जब सोनू की मम्मी ने ये बोला आप ये शर्ट ऐसे ही
लेलो हमारे किसी काम की नही, न इसे अब कोई पहनेगा न ही काम आएगी। बर्तन वाली के चेहरे पर मुस्कान सी आ गई
थी ओर मै परेशान आत्मा कि तरह दुखी सी हो गई थी। इतने मे एक आवाज आती, मम्मी कहाँ हो शायद सोनू आ गया था वह मुझे
देखता है ओर अपने हाथो मे उठाकर बोलता है “मम्मी मैंने मना किया था न, ये मेरी यादें और मन पसंदीदा शर्ट है जो स्कुल के दोस्तो की याद दिलाती है। मै
इतना सुनते ही उस पल मे चली गई जब सोनू का बारहवीं का आखरी दिन था जब वह मुझे पहन
के गया था। उसके दोस्त, हाथों मे कलर लेके घूम रहे थे सब खुश थे
लेकिन खुशी होने के साथ दुखी भी थे ऐसा लग रह था कुछ जीवन से छुट रहा था इतने सोनू
का दोस्त मोटू आता है और उसके साथ कई दोस्त थे टिकू, रिना, पिंकी सब
के सब धीरे धीरे मेरी पीठ, मेरी बाजु, मेरे कंधो पर अपना प्यार छोडते हुए मुझे रंगों से भर दिया ।
सोनू की मै स्कूल की आखरी यादे थी तभी वो मुझे अपने आप से अलग नही करना चाहता था और न ही
मै । अब मुझे दस साल से ज्यादा हो गए, अब भी मै इसी घर के एक पलंग के कोने में प्यार से तह लगा के रखी हूँ।
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