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सफर ज़िंदगी का

मध्य रात्रि का समय था। आसमान मे चादं-चमक रहा था। सडक पे बहुत भीड थी। लोग अपने घर जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे थे। उन्ही लोगो के बीच मे एक लडकी थी। जिसका रंग गेरुआ और कद करीबन पाचं फुट का था। वह एक छोटे घर से सम्बधं रखती थी। अपने घर को उजागर कर सके इसलिए एक छोटे से दफ्तर मे नौकरी करती थी। उस दिन बस के इंतजार मे वो भी वहाँ खडी थी। अन्य दिन के मुकाबले उस दिन बस नही आ रही थी। लडकी को बस का इंतज़ार करते हुए तकरीबन आधा घंटा हो गया था। धीरे धीरे चांद छूपता दिखाई दे रहा था मौसम भी बदल रहा था। आंधी आने की संम्भावना थी। हवा बहुत तेज़ चल रही थी। उस लडकी को आधा रास्ता बस से और बाकि का पैदल तय करना था। जहाँ वह रहती थी वहाँ न कोई बस जाती थी और न ही कोई गाडी वाला, उसके घर मे छोटे दो भाई बहन थे पिता तो थे लेकिन वो घर को इतनी अच्छी तरह नही देखते थे। सारा घर उसको सम्भालना था।



अचानक बडी मुश्किलो के बाद , उसे दूर से आ रही बस नज़र आती है। जो बहुत भरी हुई होती है। वह जानती थी की अगर उसने अगली बस का इंतज़ार किया तो उसे बहुत देर हो जायगी इसलिए उसने साहसपूर्ण निश्चय किया कि वह इस बस मे जायगी। लोगो की धक्का-मूक्की को सहते हुए आगे बडी अखिरकार बस के अंदर जा पहुँची। बस का माहौल बहुत गर्म था पैर रखने की जगह नही थी। बस मे बहुत शोर था बस मे गिनी-चुनी औरते थी। बाकी बस मे बूढे और जवान व्यक्ति थे। उसने बस कंडकटर से टिकट ली। बस मे आगे की सीट की ओर चली गई। आगे पहुँचने के बाद उसने देखा कि जो औरतो की आरक्षित सीट थी वहाँ एक आदमी बैठा था। वह अदमी दिखने मे तंदरुस्त लग रहा था। वह लडकी उस आदमी को देखकर वहाँ चुप-चाप खडी हो गई। आदमी ने उस लडकी को देखकर अंदेखा कर दिया। बस मे बहुत भीड होने के कारण कभी आगे से धक्का तो कभी पीछे से धक्का लगता पर उस आदमी को एक सीट मिल गई थी जो औरतो कि थी। वह उस सीट से नही उठना चाहता था उसे सब दिख रहा था, वह लडकी बहुत परेशान हो रही थी पर वह आदमी उसकी परेशानी देखकर अनदेखा करते हुए बस मे बैठा रहा। कुछ देर बाद लडकी ने देखा की वह मेरी परेशानी देखते हुए भी खडा नही हो रहा है। लडकी ने निश्चय किया कि मैं इस आदमी से कुछ कँहु लडकी ने साहसपूर्ण आदमी से कहा

“भईया ये औरतो की आरक्षित सीट है जिस पर आप बैठे हो, कृप्या करके आप मुझे ये सीट दोगे मे परेशान हो रही हुँ।"

इतना सुनते ही आदमी उसे आंख दिखाते हुए कहता है कि

“हाँ मेडम जी आप ही के लिए सीट हे बैठिए, ये सीट आप ही का इंतजार कर रही है, आईए बैठिए”

यह बोलते ही आदमी खडा हो गया,  वह लडकी सीट पर बैठ जाती है बिना कुछ कहे। मन ही मन सोचती “अगर वह आदमी को कुछ कहती तो बस मे तमाशा बन जाता और लोग-बाग उस तमाशे को देखते रहते कोई आगे बढकर कुछ नही बोलते इसलिए चुप रहना ही ठीक समझा।“ वह खिडकी की ओर मुहँ करके बैठ गई,  उस चलती बस से बाहर की ओर देखने लगी उसे अपने जीवन से बहुत आशा है वह अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करना चाहती है जिन अभावो में वह पली बडी हुई है उस माहौल में वह अपने छोटे भाई बहनो को नही देखना चाहती है। बस कि खिडकी से बाहर कि ओर देखती हुई सोचती रहती है। वह आदमी पुरे सफर हीन भावना से उस लडकी को देखता रहा। उस आदमी के मन ही मन कुछ ऐसा चल रहा था जैसे उस लडकी के साथ कुछ बुरा करे। लडकी का स्टॉप आ जाता है जहाँ उसे उतरना है फिर उसके आगे पैदल घर तक जाना है सफर काफी लम्बा है, मौसम बडा खराब है और रात भी ज्यादा हो चुकी है।
लडकी अपने स्टॉप पे उतरती है उसके पीछे वह आदमी भी उतर जाता है लडकी अपनी मगन मे आगे बढ जाती है। साथ ही साथ वह आदमी भी उसके पीछे चलता है। लडकी को आभास होता है की कोई उसका पीछा कर रहा है वह पीछे मुडती है और देखती है की वही आदमी है जो बस मे था और जिससे सीट ली थी। वह घबरा जाती है और तेज चलने लगती है। उस आदमी की पुकार उसके कानो तक लगती है “सुनीए, तुम जानती हो औरत कौन होती है? औरत का मतलब भी पता है। औरत वह होती है जिसका बच्चा होता है तुम तो एक जवान और खुबसूरत लडकी हो, मै तुम्हे बताता हु औरत कैसे बनते है” और उसे अभ्रद भाषा मे बहुत कुछ बोलता है। लडकी उसकी बातो से डर कर रोते हुए वहा से भाग जाती है।

Too be continue……………………

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