Skip to main content

जैसी करनी, वैसी भरनी | Short Film

सीन 01
एक बड़े से हॉल मे पार्टी चल रही है यहाँ कई बड़े बड़े लोग पार्टी मे मौजूद है वहीँ एक आदमी ने दारू पी रखी है और अपनी पत्नी से लड़ रहा है।
पति :
देखो अब चुप हो जाओ
पत्नी :
नही, अब मे चुप नही होउंगी
तुम्हारा हमेशा का है...
पति :
आग बगूला होकर थप्प्ड़ मार कर : चुप बस

अचानक थप्प्ड़ की आवाज से चारो तरफ सन्नाटा हो जाता है पत्नी चारो तरफ देखती और पलट कर पति को थप्प्ड़ मार देती है और वहाँ से चली जाती है कुछ देर बाद पति भी निकल जाता है
(कट)
सीन 02
घर जाते ही वह जल्दी जल्दी सामान पैक कर मायके जाने लगती है और पति उसको चुप-चाप देख रहा है
(कट)
सीन 03
पत्नी मायके पहूँचती है
माँ :
अभी तु इस वक्त कैसे ?
नीलम :
बस अब मे नही जाउंगी वहाँ
माँ :
मगर बात क्या है? फिर तुम लोगो का झगड़ा हो गया
नीलम बात काटते हुए और बड़बड़ाते हुए अपने कमरे मे चली जाती है

(कट)
सीन 04
अगले दिन राकेश उठता है तो देखता है कि घर की हालत बहुत खराब है सामान इधर उधर पड़ा हुआ होता है उसे बहुत तेज भूख भी लग रही होती है जब वह रसोईघर मे जाता है कुछ बनाने के लिय तो उस्से कभी दुध गिर जाता है तो कभी तेल राकेश कोई भी काम ठीक से नही हो पाता।
(कट)
सीन 05   
अगले दिन
राकेश थक कर बैड पर बैठ जाता है और नीलम के बारे मे सोचने लगता है नीलम के हाथ का खाना उसकी बाते राकेश को नीलम की याद आने लगती है उसी समय राकेश नीलम को मायके लेने चला जाता है
(कट)
सीन 06    
(मायके  मे):-
नीलम भी राकेश की चिंता करने लगती है वह खिड़की के पास जाके सोचती है कि उन्होने खाना खाया होगा कि नही वह कैसे होँगे । उन्होने दवाई समय पर ली होगी या नही वह परेशान हो जाती है और मन ही सोचती है की मैंने उनको थप्पर मारके गलती तो नही की
(कट)

सीन 07    
राकेश नीलम को बुलाने घर जाता है
राकेश :
दरवाजे पर
नीलम की माँ :
आओ बेटा ... कैसे आना हुआ
राकेश :
नीलम को लेने आया हूँ
नीलम की माँ :
बेटी अपना सामान पैक करलो... दामाद जी लेने आये है
नीलम :
नही मुझे नही जाना
राकेश :
चलो घर चलते है
नीलम :
नही मुझे घर नही जाना
राकेश :
क्या हुआ अभी तक गुस्सा हो क्या गुस्सा छोडो घर चलो
नीलम :
(नीलम राकेश की बात मान जाती है)
चलो
नीलम और राकेश घर आ जाते है   
(कट)
सीन 08  
एक हफ्ते बाद  
नीलम और राकेश चाय की चुस्कियो के साथ बहस कर रहे है अचानक बहस ज्यादा आगे बढ जाती है
राकेश :
मै सही हूँ अब
नीलम :
नही इस बार मै सही हूँ

राकेश फिर से गुस्से मे आ जाता है और थप्प्ड़ मारने के लिए हाथ उठाता है लेकिन रुक जाता है उसे सीन 01 की याद आ जाती है और वह वहाँ से चला जाता है | नीलम सीन 06 की बात याद करती है की (मन ही सोचती है की मैंने उनको थप्पर मारके गलती तो नही की) फिर बाद मे सोचती है हाँ मैंने टिक किया |

Men and Women are both equal part of society

(कट )


Comments

Popular posts from this blog

बूंदा-बांदी और नाले का पानी

बारिश का मौसम था। हल्की-हल्की बारिश की बूंदा-बांदी हो रही थी शाम के छः बज रहे थे लोग अपने दफ्तर से घर की और जाने के लिए बस स्टेंण्ड पर बस का इंतजार कर रहे थे अन्य दिन के मुकाबले बस की सेवा भी बहुत कम थी बस भी नही आ रही थी वहीं उसी लोगो की भीड़ मे एक 20 वर्ष का लड़का बस स्टेंण्ड पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर हल्की-हल्की दाढी-मूछ थी आँखो का रंग भूरा था और साधारण से कपडे पहने हुए थे ऊपर केसरी रंग का कुर्ता था और नीचे काले रंग की पेंट। अपनी गोद मे बैग लिए हुए उसे बजा रहा था। अन्य लोगो के मुकाबले वह  लड़का बहुत धैर्य पूर्वक बैठा हुआ अपनी मस्ती से मग्न था। कभी बैग बजाता , कभी गाना गाता तो कभी अपने आप में बढबढाता हुआ नाटक करता। आस-पास खडे स्टेंण्ड पर लोग उसे पागल समझते लेकिन उस लड़के को ये परवाह नही थी कि लोग क्या सोचते है लोगो कि सोच को वह अपने पर हावी नही होने देता। काफी देर बाद एक लोकल वाहन आता है , उस बस स्टेंण्ड पर और वह वाहन चालक सवारी को आवाज लगाता है। वह लड़का उस वाहन चालक के पास जाता है , पूछता है “खानपुर चलोगें।” वाहन चालक उस लड़के को टका सा जवाब देते हुए कहता है “भईया खानप...

संगीत

सर्दी का समय था । मौसम एक दम ठन्डा था। सूरज डुबता नजर आ रहा था । गली मे नाले का पानी भरा हुआ था जिस वजह से लोग अपने घरो के बाहर निकल कर शोर मचा रहे थे। वही एक लडका था जो अपने घर मे बैठा हुआ  अपने संगीत का रियाज कर रहा था। शरीर से गोल मटोल था चेहरे का रंग सावला था। आँखे मछ्ली की तरह थी हमेशा उसकी आँखो मे पानी भरा होता था जैसा लगता की वह रो रहा है। उसकी अवाज इतनी मधुर थी कि कोई भी गालीब की शायरीयो की तरह उसका दीवाना हो जाए। जब भी वह चलता था तो लोगो को उसके चेहरे के हाव भाव ऐसे लगते थे जैसे वह एक घमन्डी लडका है जो किसी से अपना सम्बंध स्थापित नही करना चाहता लेकिन असल मे उसका स्वभाव ऐसा नही था। उसके तीन और बड़े भाई थे, जिनमे से दो की शादी हो चुकी थी उससे बडा कुवाँरा था।  मम्मी भगवान के घर जा चुकी थी, जो उस लडके के दिल मे हमेशा कही कमी महसुस होती थी। पिता सिर्फ नाम मात्र ही थे हमेशा अपने ही काम मे मगन रहते थे। वह घर मे तो रहता था लेकिन बंद पिन्जरे मे तोते की तरह। वह बहुत कम घर से बाहर निकलता था। उस पुरी गली मे उसका एक दोस्त था जो उससे कभी-कभार मिलने आया करता था। वह अपना पूरा समय एक ...

विकलांग कौन ?

मई का महीना था सुरज सर पर चढ ता हुआ नजर आ रहा था ।   गर्मी से लोगो का हाल बेहाल हो रहा था   । सब अपने घर के अंदर कुलर ,  एसी ,  पँखे की हवा में बैठे हुए थे ,  उससे गर्मी से राहत ले रहे थे मौहल्ला बडा सुन-सान था। उस मौहल्ले से जोर- जोर से एक आवाज आ रही थी जैसे कोई वस्तु बेचने के लिए घूम रहा हो उसी बीच एक आदमी अपने घर से नीचे की ओर उस आवाज को सुनने के लिए देखता है ,  जो एक लकड़ी  से बनी कुर्सी पे बैठा हुआ था उसे बहुत दुर एक बच्चा दिखाई पडता है जिसकी उम्र लगभग बारह वर्षीय होगी ,  शरीर पर फटे-पूराने कपडे पहने थे जिसका  रंग फीका था ,  चेहरा धूप के कारण काला हो चुका था फिर भी वो जब हँसता था तो मानो ऐसा लगता था कि वह एक गुलाब के फुल की खुशबू जैसा है जो खुशबू दूसरो को देते हुए सबके चेहरे पे रोनक आ जाए उस लड़के के साथ उसकी माँ भी थी जो अपने उस प्यारे से बच्चे को हमेशा खुश देखना चाहती थी माँ और बेटा दोनो जोर-जोर से आवाज लगा के चूड़ियो की रेड़ी को आगे धक्का देते हुए गाना गा रहे थे। ”ऐ भईया ,  ऐ बहना ,  चूड़ी वाली आई है ,  चौब...