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मेरी यादें

वहाँ कई सारे कपड़े बिखरे पड़े थे। एक बर्तन वाली से बर्तन बदलने के लिए उन्ही के बीच मे मै थी। जब सोनू के पापा ने सोनू के लिए मुझे उसके जन्मदिन पर तोहफा , मुझे लाके दिया , उस समय मेरा रंग सफेद चमचमाता हुआ था। वो मुझे अपनी मन पसन्दीदा कपड़ो मे गिना करता था। मुझे सम्भाल के रखा जाता ओर प्रेस करके पहना जाता था। आज मै पुरानी ओर मेरा रंग फिका हो गया था तो मुझे घर से बेदखल कर दिया जा रहा था। वहाँ सोनू की मम्मी और कपड़ो से बर्तन बदलने वाली दोनो ही कपड़ो को धीरे-धीरे देख-देख कर छाट रहे थे। कपड़े जमीन पर रखे हुए थे उनके साथ मै भी थी। पुराने कपड़े एक-एक करके बर्तन बदलने वाली की बाल्टी मे जा रहे थे। मै मन-ही-मन डर रही थी। इस घर की मुझे आदत सी हो गई थी। सोनू की मम्मी को पसीना आ रहा था मुझे लगा मेरे को दुर भेजने को लेकर घबराहट से , लेकिन ऐसा नही था। पसीना गर्मी की वजह से आ रहा था। सोनू की मम्मी बोलती है “ अरे , बहन कितनी गर्मी है , इस गर्मी मे तो घर से निकलने का मन ही नही करता। “   बर्तन वाली अपना पल्लू उठाते हुए हवा करती “ हाँ बहन देखो पंखा चल रहा है लेकिन पसीने तो ....... ” सोनू की मम्मी जल्दी...

संगीत

सर्दी का समय था । मौसम एक दम ठन्डा था। सूरज डुबता नजर आ रहा था । गली मे नाले का पानी भरा हुआ था जिस वजह से लोग अपने घरो के बाहर निकल कर शोर मचा रहे थे। वही एक लडका था जो अपने घर मे बैठा हुआ  अपने संगीत का रियाज कर रहा था। शरीर से गोल मटोल था चेहरे का रंग सावला था। आँखे मछ्ली की तरह थी हमेशा उसकी आँखो मे पानी भरा होता था जैसा लगता की वह रो रहा है। उसकी अवाज इतनी मधुर थी कि कोई भी गालीब की शायरीयो की तरह उसका दीवाना हो जाए। जब भी वह चलता था तो लोगो को उसके चेहरे के हाव भाव ऐसे लगते थे जैसे वह एक घमन्डी लडका है जो किसी से अपना सम्बंध स्थापित नही करना चाहता लेकिन असल मे उसका स्वभाव ऐसा नही था। उसके तीन और बड़े भाई थे, जिनमे से दो की शादी हो चुकी थी उससे बडा कुवाँरा था।  मम्मी भगवान के घर जा चुकी थी, जो उस लडके के दिल मे हमेशा कही कमी महसुस होती थी। पिता सिर्फ नाम मात्र ही थे हमेशा अपने ही काम मे मगन रहते थे। वह घर मे तो रहता था लेकिन बंद पिन्जरे मे तोते की तरह। वह बहुत कम घर से बाहर निकलता था। उस पुरी गली मे उसका एक दोस्त था जो उससे कभी-कभार मिलने आया करता था। वह अपना पूरा समय एक ...

विकलांग कौन ?

मई का महीना था सुरज सर पर चढ ता हुआ नजर आ रहा था ।   गर्मी से लोगो का हाल बेहाल हो रहा था   । सब अपने घर के अंदर कुलर ,  एसी ,  पँखे की हवा में बैठे हुए थे ,  उससे गर्मी से राहत ले रहे थे मौहल्ला बडा सुन-सान था। उस मौहल्ले से जोर- जोर से एक आवाज आ रही थी जैसे कोई वस्तु बेचने के लिए घूम रहा हो उसी बीच एक आदमी अपने घर से नीचे की ओर उस आवाज को सुनने के लिए देखता है ,  जो एक लकड़ी  से बनी कुर्सी पे बैठा हुआ था उसे बहुत दुर एक बच्चा दिखाई पडता है जिसकी उम्र लगभग बारह वर्षीय होगी ,  शरीर पर फटे-पूराने कपडे पहने थे जिसका  रंग फीका था ,  चेहरा धूप के कारण काला हो चुका था फिर भी वो जब हँसता था तो मानो ऐसा लगता था कि वह एक गुलाब के फुल की खुशबू जैसा है जो खुशबू दूसरो को देते हुए सबके चेहरे पे रोनक आ जाए उस लड़के के साथ उसकी माँ भी थी जो अपने उस प्यारे से बच्चे को हमेशा खुश देखना चाहती थी माँ और बेटा दोनो जोर-जोर से आवाज लगा के चूड़ियो की रेड़ी को आगे धक्का देते हुए गाना गा रहे थे। ”ऐ भईया ,  ऐ बहना ,  चूड़ी वाली आई है ,  चौब...

सफर ज़िंदगी का

मध्य रात्रि का समय था। आसमान मे चादं-चमक रहा था। सडक पे बहुत भीड थी। लोग अपने घर जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे थे। उन्ही लोगो के बीच मे एक लडकी थी। जिसका रंग गेरुआ और कद करीबन पाचं फुट का था। वह एक छोटे घर से सम्बधं रखती थी। अपने घर को उजागर कर सके इसलिए एक छोटे से दफ्तर मे नौकरी करती थी। उस दिन बस के इंतजार मे वो भी वहाँ खडी थी। अन्य दिन के मुकाबले उस दिन बस नही आ रही थी। लडकी को बस का इंतज़ार करते हुए तकरीबन आधा घंटा हो गया था। धीरे धीरे चांद छूपता दिखाई दे रहा था मौसम भी बदल रहा था। आंधी आने की संम्भावना थी। हवा बहुत तेज़ चल रही थी। उस लडकी को आधा रास्ता बस से और बाकि का पैदल तय करना था। जहाँ वह रहती थी वहाँ न कोई बस जाती थी और न ही कोई गाडी वाला , उसके घर मे छोटे दो भाई बहन थे पिता तो थे लेकिन वो घर को इतनी अच्छी तरह नही देखते थे। सारा घर उसको सम्भालना था। अचानक बडी मुश्किलो के बाद , उसे दूर से आ रही बस नज़र आती है। जो बहुत भरी हुई होती है। वह जानती थी की अगर उसने अगली बस का इंतज़ार किया तो उसे बहुत देर हो जायगी इसलिए उसने साहसपूर्ण निश्चय किया कि वह इस बस मे जायगी। लोगो ...